October 10, 2008

Kuch TriveniyaN

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मैंने नहीं कहा तुमसे, नीला रंग तुम पर कितना फबता है
परसों वाली नीली साड़ी तुमने आज फिर पहन ली है

शायद तुमने कल फिर मेरी डायरी पढ़ी है ......

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टाई, जुराबे, रुमाल, जान - बूझ कर भूल जाता हूँ
कुछ चीज़ों के सहारे मैने तुम्हे अपने करीब रखा है

अरे सुनो!! मेरी कमीज का बटन आज फिर टूट गया है .......
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तुम्हे तो ठीक से रूठना भी नहीं आता
कल बिगड़ी थी, आज फिर बतियाने लगी हो

बिछड़ के हाल तुम्हारा भी मेरे जैसा है .....
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तुमने देखा और फिर इस कदर देखा
कि जैसे कुछ नहीं देखा

तुम अजनबी के किरदार में भी फेल हो गए ......

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खुल के जूडे से काँधे पे बिखर जाती हैं
गुंथ के चोटी में घटा कैसे संवर जाती हैं

और मैं चातक सा, कब से इंतज़ार में हूँ बारिश के ......

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मुस्कुराये, बात की, हाल -चाल पुछा
बाते इधर -उधर की , घर की, दफ्तर की

चलो एक और काम ख़त्म हुआ .....

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स्कूल कि किताबो कि रद्दी पिताजी ने आठ रुपये में बेच दी
वो आठ रुपयों का हिसाब मैं आज तक नहीं लगा पाया हूँ

जब भी खोली थी किताब तेरा ही अक्स पाया था .....
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अतीत!!शाम हुई, चलो, साहिल तक टहल आयें
तुम्हे फिर समंदर में डूबा आऊंगा

तुम्हारी यादों का पुलिंदा बड़ा भारी है......
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'अगले चौराहे से दाहिने हाथ पर तीसरा मकान'
वो बेचारा पूछ रहा था अपना घर

NRI है, कल परदेस से लौटा है....
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सुबह का अखबार, शाम कि सिगरेट, रात में डायरी,
मुझे अक्सर घर में खोये हुए से लगते हैं

उफ़ !! तुम्हे तो हर चीज़ में सौत नज़र आती है.....
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2 comments:

Nagendra said...

Nidhish Ji Keep it up..Awesom Line Specialy
स्कूल कि किताबो कि रद्दी पिताजी ने आठ रुपये में बेच दी
वो आठ रुपयों का हिसाब मैं आज तक नहीं लगा पाया हूँ

जब भी खोली थी किताब तेरा ही अक्स पाया था .....

Nagendra said...

Nidhish Ji Keep it up..Awesom Line Specialy
स्कूल कि किताबो कि रद्दी पिताजी ने आठ रुपये में बेच दी
वो आठ रुपयों का हिसाब मैं आज तक नहीं लगा पाया हूँ

जब भी खोली थी किताब तेरा ही अक्स पाया था .....